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मंगलवार, 28 जून 2011

समय जो बीत गया

खदेरन और फाटक बाबू लॉन में बैठे अभी-अभी थमी बारिश का लुत्फ़ ले रहे थे और बात-चीत कर रहे थे।

शादी पर बात आ गई। शादी के दिनों को याद करते हुए फाटक बाबू ने कहा, “जब तक शादी नहीं हुई थी मुझे एहसास ही नहीं था कि सच्ची ख़ुशी क्या होती है?”

खदेरन ने बड़े भोलेपन से कहा, “छोड़िए न फाटक बाबू! अब पछताने से क्या फ़ायदा? वह समय तो बीत गया।”

रविवार, 26 जून 2011

जूता

खदेरन का जूता काफ़ी पुराना हो गया था। फाटक बाबू ने उससे कहा, ‘‘खदेरन अब इसे बदल ही डालो। जगह-जगह से तुम्हारी पांव की उंगली इसके बाहर झांक रही है।”

खदेरन ने सोचा, “अब बहुत कंजूसी हो गाई बदल ही देता हूं।”

वह फुटपाथ के दूकानदार से एक जोड़ी जूती बहुत मोल-तोल कर ले आया। जब वह वापस लौट रहा था तो अपनी पीठ भी ठोक रहा था कि उसने दूकानदार को बेवकूफ़ बना कर काफ़ी सस्ते में यह जूता ख़रीद लिया है।

घर पर आकर जब उसने उसे पैर में डाला तो बहुत मुश्किल से उसके पैर में आया। अब क्या करे! उसने उस जूते से ही काम चलाने का सोचा।

वह छोटा जूता पहने इधर से उधर घूम रहा था।

भगावन की निगाह उस पर पड़ी, तो बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकते हुए उसने कहा, “पापा! आपने यह जूता कहां से लिया।”

झुंझलाया तो था ही, अपनी बेवकूफ़ी पर खदेरन को गुस्सा भी था। अब भगावन के इस प्रश्न ने उसके सब्र की परीक्षा ही ले ली। बोला, “पेड़ से तोड़ा है।”

भगावन ने हंसते हुए कहा, “तो पापा, अगर दो चार महीने बाद तोड़ते तो आपके पैर के क़ाबिल हो जाता, ज़रा ज़ल्दी की आपने इसे तोड़ने में!”

शुक्रवार, 24 जून 2011

एक और प्रवचन …!

बाबा का प्रवचन सुनकर फाटक बाबू और खदेरन लौट रहे थे।

रास्ते में फाटक बाबू ने कहा, “कितनी शांति मिलती है इस तरह के प्रवचन सुनकर। कितना ज्ञान बढ़ता है!”

खदेरन ने हां में हां मिलाई, “ठीके कहते हैं फाटक बाबू।”

फाटक बाबू ने आगे कहा, “कितना सही कहा बाबा ने दुख हमेशा हमारे साथ रहता है, लेकिन खुशी तो आती-जाती रहती है।”

खदेरन चहका, “बहुत सही फाटक बाबू, बहुत सही! अब देखिए न फुलमतिया जी तो हमेशा हमरे साथे न रहती हैं, लेकिन उनका बहिन सुगंधिया त आती-जाती रहती है।”

मंगलवार, 21 जून 2011

परेशानी का हल

images (42)खदेरन परेशान हो गया। अपनी परेशानी का हल ढ़ूंढ़ने एक साधु के पास पहुंचा।

बोला, “बाबा! मेरी बीवी मुझे बहुत परेशान करती है। मैं बहुत परेशान हूं। इस परेशानी से निजात पाने का कोई उपाय बताइए बाबा!”

बाबा बोले, “बच्चा! अगर इस परेशानी का कोई उपाय मुझे पता होता तो मैं ही साधु संन्यासी क्यों बनता?”

सोमवार, 20 जून 2011

कहीं बाहर चलते हैं।

फुलमतिया जी चहक रही थीं। जब वो चहकती हैं तो सुन्दर दिखती हैं, यह उनका मानना है। आज खदेरन घर पर है। उसकी छुट्टी है। शाम होते ही फुलमतिया जी ने प्रस्ताव रखा, “चलो न, आज की शाम कहीं बाहर चलते हैं।”

खदेरन, “आज बहुत थक गया हूं।”

फुलमतिया जी, “कोई बात नहीं, कार मैं चलाऊंगी, तुम आराम से बैठना।”

खदेरन मन ही मन, ‘ओह! बुरे फंसे। मतलब जाएंगे कार में और आएंगे कल के अखबार में।’

रविवार, 19 जून 2011

क्या फ़र्क़ है

vcm_s_kf_repr_120x160खदेरन और फाटक बाबू गार्डेन में टहल रहे थे। बात-चीत का रुख पत्नी की तरफ़ मुड़ा।

फाटक बाबू बोले, “खदेरन लोग पत्नी को अलग-अलग नामों से बुलाते हैं, जैसे जोरू, बीवी या फिर घरारी। इनमें क्या फ़र्क़ है बोलो?”

खदेरन ने फट से इसका जवाब दिया, “कोई फ़र्क़ नहीं है फाटक बाबू! ये एक ही मुसीबत के अलग-अलग नाम हैं।”

मंगलवार, 14 जून 2011

फीस पूरा देना होगा!

तलाक का मुक़दमा चल रहा था।

मामला बहस के स्टेज तक आ गया।

मुवक्किल चवनिया प्रसाद ने अपने वकील से कहा, “जम के बहस कीजिए ताकि इस मुसीबत से मेरा जल्द से जल्द पीछा छूट जाए।”

वकील अकलु सिंह ने कहा, “वो तो मैं निपटा दूंगा, पर फीस पूरा देना होगा।”

चवनिया के माथे पर बल पड़ गए। पूछा, “कितना लेंगे आप?”

अकलु सिंह वकील ने मुस्कुराते हुए कहा, “ज़्यादा नहीं, बस पचास हज़ार रुपए लगेंगे।”

चवनिया की हैसियत तो नाम के अनुरूप ही थी, बोला, “आपका दिमाग तो नहीं फिर गया? जिसे आप तुड़वाने के लिए पचास हजार मांग रहे हैं, उस शादी के बंधन में बंधने के लिए हमें पंडित को सिर्फ़ इक्यावन रुपए देने पड़े थे।”

अकलु सिंह वकील सिर्फ़ नाम से ही नहीं सच में बुद्धि से भी अकलु ही थे, बोले, “तो देख लिया न सस्ते का नतीज़ा …!”

शनिवार, 11 जून 2011

डिक्शनरी

नए-नए ज्वायन किए प्रिंसिपल साहब निरीक्षण कर रहे थे।

Special Internet Dictionary Logoवह भगावन की क्लास में आया। उसने बच्चों से पूछा, “बताओ आसमान में कितने तारे होते हैं?”

एक बच्चा उठा और बोला, “सर यह बताना तो असंभव है।”

प्रिंसिपल गुर्राया, “असंभव नाम का शब्द मेरी डिक्शनरी में नहीं है।”

भगावन बोला, “यह आपको तो तब सोचना चाहिए था जब आपने डिक्शनरी खरीदी थी।”

शुक्रवार, 10 जून 2011

एक्सीडेंट

खदेरन के अंतरंग मित्र रिझावन की ट्रक से टक्कर लग गई। स्कूटर तो चकनाचूर हुआ ही उसके भी कई अंग भंग हुए।

डॉक्टर उठावन सिंह के अस्पताल में उसका उपचार हुआ था। खदेरन उसे देखने पहुंचा।

सामने ही डॉक्टर उठावन सिंह मिल गए। खदेरन ने डॉक्टर से पूछा, “डॉक्टर सहाब मेरे दोस्त रिझावन का अब क्या हाल है?”

डॉक्टर उठावन सिंह ने बताया, “अब वो खतरे से बाहर हैं।”

सुनकर खदेरन को तसल्ली हुई। वो अपने दोस्त के वार्ड में पहुंचा। देखा दोस्त बड़ा सहमा और डरा हुआ है। उसने अपने दोस्त रिझावन से पूछा, “अब तो तुम खतरे से बिल्कुल बाहर हो, फिर भी इतना डरे और सहमे क्यों हो?”

रिझावन ने बताया, “जिस ट्रक से मेरा एक्सीडेंट हुआ था, उस पर लिखा था, … ‘ज़िन्दगी रही तो फिर मिलेंगे!’ … ”

गुरुवार, 9 जून 2011

शीर्षक दें

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आग लागी हमरी झोपड़िया में हम गावै मलहार!

सोमवार, 6 जून 2011

जिज्ञासा

vcm_s_kf_repr_176x220उसने शादी की।

एक सामान्य सा प्रश्न खदेरन के मन में आया। उसने पूछा, “तुमने शादी क्यों की?”

एक बहुत  ही सामान्य सा कारण उसने बताया, “ख़ुशियां और सुख पाने के लिए।”

वह तलाक ले रहा है।

एक विशिष्ट प्रश्न खदेरन के मन में आया। वह पूछ ही बैठा, “तुम तलाक क्यों ले रहे हो?”

उसने अतिविशिष्ट कारण बताया, “खोई हुई ख़ुशियां पाने के लिए।”

शनिवार, 4 जून 2011

हम तुम कहीं को जा रहें हो और रास्ता भूल जाएं

फुलमतिया जी खदेरन के साथ फ़िल्म देख रही थीं। फ़िल्म vcm_s_kf_repr_321x380का नाम था, बॉबी। गाना चल रहा था, ‘हम तुम कहीं को जा रहें हो और रास्ता भूल जाएं, सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो?’

फुलमतिया जी की चतुर बुद्धि में एक प्रश्न आया, “ए जी! अगर मैं खो गई, तो तुम क्या करोगे?”

खदेरन ने माथे पर बल डाला और जवाब दिया, “मैं अखबार में छपवाऊंगा!”

फुलमतिया जी का मन प्रसन्न हुआ, बोली, “तुम कितने अच्छे हो!” फिर पूछा, “क्या छपवाओगे?”

खदेरन ने बताया, “फुलमतिया जी, मैं छपवाऊंगा कि आप जहां भी हों, आराम से रहें और खुश रहें!”

शुक्रवार, 3 जून 2011

समझदारी

एक दिन फाटक बाबू और खदेरन बरामदे में बैठे गप-शप कर रहे थे।

बात-चीत का क्रम घूम-फिर कर शादी पर आ पहुंचा।

फाटक बबू ने पूछा, “खदेरन, तुमको नहीं लगता कि ज़रा सी समझदारी से लाखों तलाक के मामले रोके जा सकते हैं?”

खदेरन ने जवाब दिया, “फाटक बबू, आपको नहीं लगता कि ज़रा सी समझदारी से शादियां भी तो रोकी जा सकती हैं!”

गुरुवार, 2 जून 2011

तू-तू, मैं-मैं

vcm_s_kf_repr_192x192फुलमतिया जी और खदेरन में जम कर तू-तू, मैं-मैं हुई।

नाराज़ होकर फुलमतिया जी ने ‘मैं मायके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो’ को अंजाम देने का निर्णय लिया।

स्टेशन पर ट्रेन आने की प्रतीक्षा कर रहीं थी, कि हांफता-कांपता खदेरन पहुंचा। उसे अब तक अपनी ग़लती का अहसास होने लगा था। उसने फुलमतिया जी को मनाने के जितने भी तरीक़े उसे आते थे आजमा डाले। पर ‘मायके चली जाऊंगी’ के अपने निर्णय पर वो अटल रहीं।

थक हार कर अंत में खदेरन बोला, “अगर आपने मेरे साथ वापस लौटना नहीं स्वीकार किया तो मैं आने वाली गाड़ी से कटकर मर जाऊंगा। … और हां, मुझे आपका निर्णय फ़ौरन चाहिए।”

फुलमतिया जी का दिल इसपर भी नहीं पिघला था, और बोलीं, “मुझे सोचने दो जल्दी क्या है? गाड़ी तो हर आधे घंटे में आती है।”