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रविवार, 25 दिसंबर 2011

असल की ज़िन्दगी

एक दिन फाटक बाबू और खदेरन टीवी पर सिनेमा देख रहे थे। फ़िल्म का अंत देख कर interviewखदेरन बहुत भावुक हो गया। उसकी आंख से टप-टप आंसू गिरने लगे।

फाटक बाबू बोले, “अरे खदेरन रोता क्यों है? यह कोई असल की ज़िन्दगी थोड़े है। यह तो फ़िल्म है।”

खदेरन ने आंसू पोछते हुए कहा, “अच्छा। फाटक बाबू! फ़िल्मी ज़िन्दगी और असल की ज़िन्दगी में क्या फ़र्क़ होता है?”

फाटक बाबू ने बताया, “फ़िल्मों में बहुत मुश्किलों के बाद शादी होती है, और असली ज़िन्दगी में तो शादी के बाद मुश्किलें पता चलती हैं।”

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

लड़ाई सीट के लिए

thumbखदेरन बस में जा रहा था।

उसके बगल की सीट खाली थी।

एक स्टॉप पर दो लड़कियां चढ़ीं। उस पर बैठने के लिए दोनों लड़ने लगीं। काफ़ी देर तक लड़ती रहीं। खदेरन ने कहा, “क्यों लड़ रही हो दोनों। जो तुम दोनों में बड़ी हो, वह बैठ जाए।”

लड़ाई बन्द हो गई। सारे रास्ते दोनों खड़ी रहीं।

रविवार, 18 दिसंबर 2011

शरारत

खदेरन के बेटे भगावन को स्कूल में शरारत करते देख उसकी क्लास टीचर, मिस गुनगुनिया डांटते हुए बोली, “जब मैं तुम्हारी उम्र की थी तो इतनी शरारत नहीं करती थी।”

भगावन ने पूछा, “तो मैम, आपने शरारत कब शुरु की ?”

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

रेड हॉट मारुती

बात इस बार भी उन्हीं दिनों की है, जब खदेरन और फुलमतिया जी की शादी नहीं हुई थी, पर उनके बीच कुछ-कुछ हो रहा था।

फुलमतिया जी के जन्मदिन के अवसर पर खदेरन उनके घर गया। बोला, “जन्मदिन की ढेरों बधाईयां, शुभकामनाएं।”

फुलमतिया जी ने कहा, “वो सब तो ठीक है, पर मेरा बर्थ डे गिफ़्ट … वो कहां है, क्या है?”

खदेरन ने बाहर की ओर इशारा करते हुए कहा, “देखिए, बाहर देखिए! वह जो रेड हॉट मारुती खड़ी है न …”

फुलमतिया जी ख़ुशी से उछल पड़ीं। बोलीं, “सच …!”

खदेरन बोला, “बिलकुल उसी कलर की नेल पॉलिश ली है आपके लिए।” और खदेरन ने जेब से नेलपॉलिश निकालकर फुलमतिया जी के सामने रख दी।

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

बैलेंस चेक

एटीएम के पास एक महिला ने खदेरन से कहा : "ए भाई! जरा हमरा बैलेंस चेक कर दो।"

खदेरन ने औरत को धक्का दे दिया...!

बेचारी औरत गिर गयी.... "कोढिया, सरधुआ.....!"

खदेरन - "माई तोहार बैलेंस गड़बड़ बा.... देहियो के आ दिमागो के...!"

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

सच्चा प्यार

images (27)बात उन दिनों की है जब फुलमतिया जी और खदेरन की शादी तो नहीं हुई थी लेकिन कुछ-कुछ हो रहा था दोनों के बीच में।

एक दिन खदेरन ने सुना कि किसी बड़े अभिनेता ने अपने बाजुओं पर प्रेमिका का नाम खुदवा लिया। खदेरन ने जोश में आकर कहा, “फुलमतिया जी! आप बताइए मैं आपका नाम हाथ पर लिखवाऊं या दिल पर!”

फुलमतिया जी ने पूछा, “सच्चा प्यार करते हो मुझसे?”

खदेरन ने कहा, “इसमें कोई शक है क्या?”

फुलमतिया जी ने जवाब दिया, “तो सीधे अपनी प्रोपर्टी के पेपर पर लिखो!”

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

चित्र का शीर्षक क्या हो?

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मेरा शीर्षक …

हम छोड़ चले हैं …

रविवार, 27 नवंबर 2011

परी आकाश में

images (68)खदेरन के बेटे भगावन ने अपनी मम्मी फुलमतिया जी से पूछा, “मम्मी! क्या परी आकाश में उड़ती है?”

फुलमतिया जी ने कहा, “हां बेटा!”

भगावन ने फिर पूछा, “तो अपनी कामवाली झुनझुनिया उड़ती क्यों नहीं?”

फुलमतिया जी ने कहा, “झुनझुनिया परी थोड़े न है ..!”

भगावन ने कहा, “पर पापा तो उसे परी कहते हैं!”

फुलमतिया जी ने गुस्से से तमतमाते हुए कहा, “अच्छा! आने दे, उसे उड़ाकर ही दिखाऊंगी तुझे …!”

बुधवार, 23 नवंबर 2011

फ़रमाईश

भंगेरन : मैं तुम्हे सच में बहुत पसंद करता हूँ.........

भगजोगनी : मेरी चप्पल का साइज पता है न... ?

भंगेरन : लो कर लो बात........ दोस्ती हुई नहीं कि.... फ़रमाईश शुरु...!

रविवार, 13 नवंबर 2011

महंगी जगह की सैर!

“अजी सुनते हो?” फुलमतिया जी ने खदेरन को पुकारा।

“हम्म” खदेरन का संक्षिप्त जवाब था।

“फाटक बाबू खंजन दी को काफ़ी महंगी-महंगी जगह घुमा कर लाए हैं।” फुलमतिया जी ने बताया।

किसी उधेर-बुन में लगा, खदेरन ने फिर “हूं-हां” में ही जवाब दिया।

यह देख फुलमतिया जी को लगा कि सीधे मुद्दे पर आया जाए। बोलीं, “मुझे भी किसी महंगी जगह घुमाने ले चलो ना!”

खदेरन उसी धुन में बोलता गया, “चलो तैयार हो जाओ, चलते हैं।”

खुश हुई फुलमतिया जी के मन में शंका भी जनमी, उन्होंने दूर करना ही उचित समझा। पूछीं, “कहां-कहां ले चलोगे?”

खदेरन ने बताया, “पहले पेट्रोल पंप चलेंगे, फिर गैस एजेन्सी के यहां और अंत में सब्जी मंडी!!”

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

सबूत

जज : क्या सबूत है कि तुम गाड़ी स्पीड में नहीं चला रहे थे।

खदेरन : माई-बाप! मैं फुलमतिया जी को लाने ससुराल जा रहा था।

 

एक गम्भीर दृष्टि खदेरन पर डालते हुए जज ने फैसला सुनाया :

परिस्थिति-जन्य साक्ष्य के आधार पर अभियुक्त पर लगाया गया इलज़ाम साबित नहीं होता इसलिए केस डिसमिस!

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

जब मति मारी जाए

 

जब मति मारी जाए

 

पत्नी के बगैर जिनका

एक पल काम चल न पाए

ऐसे लोगों की

जब मति मारी जाए

तो वे पत्नी से लड़ लेते हैं

और कुछ कर तो सकते नहीं

बोलना छोड़ देते हैं।

 

किसी छोटी सी बात पर

दिल अपना तोड़ लिया था

और

खदेरन ने फुलमतिया जी से

बोलना छोड़ दिया था।

 

अगले दिन उसे किसी काम से

सुबह चार बजे जाना था

और चार बजे उठने के लिए

फुलमतिया जी को मनाना था।

 

पर तभी उसका पुरुष अहं आड़े आया

‘पहले बोलना’

उसके मन को नहीं भाया।

 

बिना बोले भी काम चल जाए

उसने एक तरकीब निकाली

और फुलमतिया जी के नाम

एक चिट्ठी लिख डाली।

 

खत पर फिर से एक दृष्टिपात किया

और उसे फुलमतिया जी के

सिरहाने रख दिया।

 

लिखा था,

“देखो इसे तुम मेरा

सीजफ़ायर मत समझ लेना

जाना है ज़रूरी काम से

मुझे चार बजे जगा देना।

 

अगली सुबह जब उसकी आंख खुली

तो दीवार घड़ी नौ बजा रही थी।

उसकी ट्रेन तो

कब की जा चुकी थी।

 

गुस्से से उसका दिमाग भन्नाया

मन ही मन वह पत्नी पर

मन-ही-मन चिल्लाया

‘करम मेरी फूटी

जो इसके साथ लिए सात फेरे

जगा नहीं सकती थी

मुझको सुबह-सवेरे!’

 

तभी उसकी नज़र सिरहाने पर पड़ी

एक ख़त उसका इंतज़ार कर रहा था

खोला और देखा उसमें लिखा था

“अब हर बात में

मेरा ही दोष मत बताइए।

सुबह के चार बज गये हैं

जाग जाइए।”

शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

बीवी बच्चों की याद

फाटक बाबू के घर आया मेहमान जाने का नाम नहीं ले रहा था। वो जाए कैसे फाटक बाबू को कोई तरकीब सूझ ही नहीं रही थी।

एक दिन तंग आकर फाटक बाबू उससे बोले, “आपको अपने बीवी बच्चों की याद नहीं आती?”

मेहमान ने मुस्कुराते हुए कहा, “सच, फाटक बाबू बहुत याद आती है। कहिए तो बुला लूं सबको।”

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

मौखिक परीक्षा

images (6)भगावन प्रैक्टिकल की परीक्षा से रहा था।

वायवा (मौखिक परीक्षा) में शिक्षक ने पूछा, “यह पक्षी की टांग है। इसे देखो और बताओ इस पक्षी का नाम क्या है?”

भगावन ने कहा, “मुझे नहीं मालूम।”

शिक्षक ने ताने वाले लहजे में कहा, “तुम फ़ेल हो गये। क्या नाम है तुम्हारा?”

भगावन ने जवाब दिया, “ये मेरी टांग है। इसे देखो! और खु़द ही मेरा नाम जान लो!!”

गुरुवार, 15 सितंबर 2011

नाटक

नाटक

दृश्य एक

प्रेमी, प्रेमिका बाग में। शाम का पहला पहर।

प्रेमिका : चांद कितने होते हैं ?

प्रेमी : एक तुम और एक ऊपर !

दृश्य परिवर्तन।

शादी के बाद। ड्राइंग रूम में …

पत्नी : चांद कितने होते हैं ?

पति : अंधी हो क्या, ऊपर क्या वह तुम्हें खरबूजा नज़र आ रहा है ? !

(पटाक्षेप अभी नहीं हुआ है, नाटक अभी ज़ारी है …)

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

बस एक चित्र–शीर्षक?

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मेरा शीर्षक …

तारणहार …

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

गुरुवार, 1 सितंबर 2011

गिरफ़्तारी

वह घबराया हुआ थाने पहुंचा और थानेदार से बोला, “मुझे गिरफ़्तार कर लीजिए इंस्पेक्टर साहब! मैंने अपनी पत्नी के सिर पर डंडा मारा है।”

इंस्पेक्टर ने कोई एक्शन लेने से पहले तफ़्तीश करना ज़रूरी समझा, “तो क्या वह मर गई?”

उसने जवाब दिया, “नहीं, वह डंडा लेकर मेरे पीछे आ रही है।”

बुधवार, 31 अगस्त 2011

किताब और डायरी

फुलमतिया जी रोमांटिक मूड में खदेरन से, “मैं तुम्हारी ज़िन्दगी की किताब हूं!”

खदेरन अनमनेपन से, “यही तो तकलीफ़ है, डायरी होती तो हर साल बदल लेता।”

मंगलवार, 30 अगस्त 2011

व्यथा … !

images (27)“क्या बात है, आजकल तुम शॉपिंग भी नहीं करती, और न ही फ़िल्म देखने चलती हो?”

“कुछ नहीं यार! मैंने बहुत बड़ी ग़लती कर दी है।”

“क्यों, ऐसा क्या किया तूने?”

“मैंने अपने मालिक से शादी कर ली। अब वह तनख़्वाह भी नहीं देता और काम भी ज़्यादा लेता है।”

सोमवार, 22 अगस्त 2011

अंतिम इच्छा

फांसी से पहले प्रथा के अनुसार अंतिम इच्छा पूछी जाती है।

उसे फांसी दिया जाने वाला था।

उससे उसकी अंतिम इच्छा पूछा गया।

उसने कहा,

“फांसी देते वक़्त मेरा सर नीचे और पैर ऊपर कर दिया जाए।”

शनिवार, 13 अगस्त 2011

राखी की शुभकामनाएं!!


अगर बासंती की मौसी

ठाकुर को राखी बांधे

तो बासंती और ठाकुर में

क्या रिश्ता हुआ।

….

…..

?

?

?

कुछ समझ में आया।

अगर नहीं तो यहां देखें।

सोमवार, 8 अगस्त 2011

मैनेज करने का फॉर्मूला

खदेरन का बेटा है भगावन। आप भूले तो नहीं ही होंगे।

परीक्षा का परिणाम कल आ गया था। आज वह स्कूल जा रहा था। रास्ते में उसका दोस्त भोलू मिल गया। कल जो रिजल्ट आया था उसमें भोलू की कोई अच्छी स्थिति नहीं थी।

अब दोनों दोस्त की बात सुनिए …

“अरे भोलू इधर आ .. अकेले-अकेले क्यूं जा रहा है?”

“नहीं यार! बस ऐसे ही .. कोई खास बात नहीं है।”

“अच्छा यार! अरे यार भोलू, तुम्हारा तो रिजल्ट खराब आ गया।”

“तो क्या हुआ? मैं कोई डरता हूं क्या किसी से ..”

“नहीं वो तुम्हारे पिता पुलिस में हैं ना … तो ’… ”

“तो … तो क्या …”

“पुलिस वाले बड़े सख़्त होते हैं ना।”

“हां सो तो है … पर मैंने सब मैनेज कर लिया ..”

“अच्छा .. ! वो कैसे .. क्या हुआ … बता ना ..?”

“बताता हूं, सुनो … जब मैं घर पहुंचा तो पिता जी, अभी अभी थाने से आए थे और पुलिसिया वर्दी में ही थे। उन्होंने मुझसे कुछ पूछा नहीं, बल्कि बताया, उन्हें पहले से ही मालूम था, बोले … ‘बेटा, तुम्हारा रिजल्ट खराब आया है। आज से तुम्हारा खेलना, टीवी देखना बन्द। …”

भगावन ने उत्सुकता से पूछा, “अच्छा … फिर …”

भोलू ने बताया, “फिर क्या मैं भी तो पुलिस इंसपेक्टर का ही बेटा हूं ना, पुलिस वालों को मैनेज करने के सारे फॉर्मूले जानता हूं, मैंने कहा, ये लो, …  पचास रुपए पकड़ो और इस बात को यहीं रफ़ा-दफ़ा करो …!”

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

खदेरन की बुद्धिमानी !

आपने भी ग़ौर किया होगा कि खदेरन इन दिनों कुछ चालाक़-सा होता जा रहा था। उसकी इस बढ़ती बुद्धिमाने से लपेटन, झूलन और खखोरन   को ईर्ष्या होने लगी। दोनों ने फ़र्ज़ी रूप धरा और एक-एक कर खदेरन के घर पहुंचे उसका इंस्पेक्शन करने।

th_CRW_8202सबसे पहले गया लपेटन। देखा खदेरन कुत्ते को कुछ खिला रहा था। उसने कहा, “तुम कुत्ते को क्या खिलाते हो?”

खदेरन ने बताया, “जी, ब्रेड, बिस्कुट, इत्यादि ..”

लपेटन बोला, “मैं एनिमल प्रोटेक्शन असोसिएशन से हूं। तुम्हें इसे अच्छी डाइट देनी चाहिए। तुम पर जुर्माना लगाया जाता।”

… और वह जुर्माना लेकर चला गया।

कुछ दिनों के बाद झूलन भेष बदल कर पहुंचा। उसने भी वही प्रश्न दुहराया, “तुम कुत्ते को क्या खिलाते हो?”

खदेरन ने बताया, “जी मैं इसे मटन, चिकन आदि खिलाता हूं।”

झूलन ने कहा, “मैं यूएनओ का एक इंस्पेक्टर हूं। तुम्हें यह बात समझनी चाहिए कि जहां एक ओर लोग भूख से मर रहे हैं, तुम कुत्ते को ये सब खिलाते हो। तुम पर जुर्माना लगाया जाता है।”

… और वह जुर्माना लेकर चला गया।

कुछ दिनों के बाद खखोरन भेष बदल कर आया और उसने भी वही प्रश्न पूछा, “तुम कुत्ते को क्या खिलाते हो?”

खदेरन ने कहा, “जी, मैं इसे 100 रुपए दे देता हूं। अब इसकी मर्ज़ी, जो चाहे खा ले!”

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

दुश्मनों से नाता

“बेटा! अब वक़्त आ गया है तुम्हें सही रास्ता चुनना चाहिए। ये शराब, सिगरेट, लड़कियां, ये सब तुम्हारे दुश्मन हैं। इनसे नाता तोड़ लो।”

“पापा! आपने ही तो सिखाया था, जो अपने दुश्मनों को पीठ दिखाते हैं, वे मर्द नहीं होते।”

सोमवार, 1 अगस्त 2011

प्रचार पाने की तमन्ना

उसे प्रचार पाने की बड़ी तमन्ना थी। उसने चिन्तन मनन किया कि क्या किया जाए।

उसे उपाय सूझ गया।

उसने घोषणा की कि वह कुतुब मीनार को सिर पर उठाकर मुंबई ले जाएगा।

बात चारों ओर फैल गई। मीडिया वाले भी आ गए। वह चर्चा में था। नियत दिन और नियत समय भी आ गया। लोगों ने कहा अब शुरु हो जाओ।

उसने कहा, “जी अभी शुरु कर देता हूं, ज़रा इसे उठा कर मेरे सिर पर रखने में कोई मेरी सहायता तो करो।”

शनिवार, 30 जुलाई 2011

चित्र का शीर्षक क्या हो?

funny dog pictures - Goggie Gif: I Can Do It!

 

मेरा शीर्षक ::

जान बची तो लाखों उपाय,

लौट के ‘..…’ घर को आए!

सोमवार, 25 जुलाई 2011

फैसले

खदेरन अपने घर की खिटिर-पिटिर से परेशान था। किसी तरह शान्ति बहाल हो इस इरादे से फाटक बाबू के पास पहुंचा और पूछ, “फाटक बाबू आपके सुखी और शान्तिपूर्ण वैवाहिक जीवन का क्या राज़ है? कुछ हमें भी बताइए।”

फाटक बाबू ने बताया, “कुछ नहें खदेरन! बहुत सिम्पल है!! हमारे बीच शादी होते ही एक समझौता हो गया था।”

खदेरन ने उत्सुकता से पूछा, “क्या समझौता फाटक बाबू?”

फाटक बाबू ने बताया, “यही कि घर के छोटे-मोटे निर्णय खंजन देवी लेंगी और बड़े-बड़े मसले पर मेरी राय अंतिम होगी। और तब से हम इसे पूरी तरह पालन कर रहे हैं।”

खदेरन ने कहा, “कुछ उदाहरण देकर समझाइए न फाटक बाबू।”

फाटक बाबू ने समझाया, “अरे खदेरन, घर के फैसले – जो खंजन देवी लेती हैं वो ऐसे हैं – जैसे – क्या और कौन-सी चीज़ ख़रीदनी है, घर का बजट कैसे बनाना है, किस मद में कितना ख़र्च करना है, किस रिश्तेदार को कौन सा गिफ़्ट देना है, कहां जाना है, कहां नहीं जाना है, कहां इन्वेस्ट करना है, किसे बुलाना है , किसे मेड रखना है, आदि-आदि …”

खदेरन ने आश्चर्य से पूछा, “अच्छा और वो बड़े-बड़े फैसले कौन से होते हैं जो आप लेते हैं?”

फाटक बाबू ने बताया, “यही कि सचिन को कब रिटयरमेंट लेना चाहिए, अमेरिका से हमें क्या समझौता करना चाहिए, भारत को परमाणु बनाना चाहिए या नहीं, कालाधन कैसे वापस लाना चाहिए, भ्रष्टाचार मिटाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए ….!”

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

छाता की ख़रीद

पोपट को अब जाकर इस बरसात में छाता खरीदने की सूझी। अपने बजट के अनुसार एक छाता उसने पसंद किया और दूकानदार द्वारा बताए गए मूल्य के आधे से अधिक में वह लेने को राज़ी न था।

दूकनादार ने भी मन ही मन सोचा ‘पचास रुपये में इसे बेचना कम तो है, पर चलो क्या हुआ प्रोफ़िट मार्जिन थोड़ा कम है पर यह माल निकल तो जाएगा!’

उसने हामी भर दी।

छाता हाथ में लेकर पोपट ने उसे घुमा-फिरा कर देखा और दूकानदार से पूछा, “यह छाता पांच-छह साल चल तो जाएगा ना?”

दूकानदार ने कहा, “बस इसे धूप-और पानी से बचा कर रखिएगा, पांच-छह साल क्या उससे भी ज़्यादा चल जाएगा!!”

बुधवार, 20 जुलाई 2011

एस.एम.एस. जोक

एक जोक शेयर करती हूं, एस.एम.एस. से मिला है।

मुन्नाभाई :अरे सर्किट मां को इंगलिश में क्या कहते हैं?

सर्किट : मॉम कहते हैं भाई!

images (47)मुन्नाभाई : अगर मां को इंगलिश में मॉम कहते हैं तो मां की बड़ी बहन और छोटी बहन को क्या बोलने का ?

images (47)सर्किट : सिम्पल है भाई। मैक्सीमॉम और मिनीमॉम!

रविवार, 17 जुलाई 2011

आंखों का परीक्षण

images (45)खदेरन का दोस्त भुटकुन एक दिन खदेरन को अपनी समस्या बता रहा था। बोला, “दोस्त, मैं कुछ पढ़ नहीं पाता।”

खदेरन बोला, “कोई बात नहीं, तू डॉक्टर से दिखा ले सब ठीक हो जाएगा।”

भुटकुन डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर उसकी आंखों का परीक्षण कर रहा था।

images (46)भुटकुन ने पूछा, “डॉक्टर साहब! चश्मा लगाने से मैं पढ़ सकूंगा?”

डॉक्टर ने जवाब दिया, “हां-हां, क्यों नहीं।”

भुटकुन ने राहत की सांस लेते हुए कहा, “ओह! फिर तो बहुत अच्छा रहेगा, अभी तक तो  मुझे पढ़ना भी नहीं आता था।”

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

भगावन, फुलमतिया जी का बेटा ..!

भगावन स्कूल में था। उसके एक टीचक, अकलू प्रसाद  की आदत थी की वह बात-बात  में भगावन को नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता था।

अब भगावन तो भगावन था, फुलमतिया जी और खदेरन का बेटा …

देखिए …

टीचर अकलू प्रसाद, “क्या करते हो भगावन? फिर से फिसड्डी! अरे पता भी है तुम्हें,  जब बिल गेट्स तुम्हारी उम्र का था, तो वह क्लास में फ़र्स्ट आया था।”

भगावन ने जवाब दिया, “सर जी! जब हिटलर आपकी उम्र का था, तो आपको पता है, उसने आत्महत्या कर ली थी!!”

बुधवार, 13 जुलाई 2011

बुद्धिमान कौन?

गणितज्ञ :  5 के बीच में  4  कैसे लिखेंगे?

चीनी : क्या यह मज़ाक़ है?


जापानी :  असंभव!


अमेरिकी : सवाल ही ग़लत है!


अंग्रेज़ : इंटरनेट पर भी नहीं मिला।


भारतीय – खदेरन F(IV)E

शनिवार, 9 जुलाई 2011

आपस में बात

खदेरन और फाटक बाबू आपस में बात कर रहे थे।

जगह : वही फाटक बाबू का लॉन।

खदेरन ने अपनी जिज्ञासा सामने रखी, “फाटक बाबू! ऐसी पत्नी को क्या कहेंगे जो गोरी हो, लंबी हो, ख़ूबसूरत हो, बुद्धिमान हो, दिखने में अच्छी हो, पति को समझे, और कभी झगड़ा न करे।”

फाटक बाबू ने कहा, “मन का भ्रम!”

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

बहुत मुश्किल है!

खदेरन का बेटा भगावन अपने दोस्त रिझावन से बात कर रहा था। उसे पता नहीं था कि उसका बाप खदेरन पीछे खड़ा है, और उनकी बातें उसके कानों में पड़ रही हैं।

खदेरन रिझावन से, “यार रिझावन! बहुत मुश्किल है स्कूल की टीचर से प्यार करना!!”

रिझावन ने पूछा, “क्यों, क्या हुआ?”

भगावन ने बताया, “अरे यार! लव लेटर भेजा था, उसने होमवर्क समझ कर चेक कर दिया।”

पीछे से खदेरन जो अब अबतक उनकी बात सुन रहा था, बोला, “बेटा! तेरी टीचर ने आज मुझे भी एक लेटर भेजा है …”

खदेरन की बात पूरी सुनने के पहले ही भगावन ने जवाब दिया, “आप फ़िक्र मत करो पापा! मैं मम्मी को कुछ नहीं बताऊंगा!!”

बुधवार, 6 जुलाई 2011

क्या देख रहे हो?

खदेरन बहुत देर से मैरिज सर्टिफ़िकेट को घूरे जा रहा था।

फुलमतियाजी ने पूछा, “क्या देख रहे हो?”

खदेरन ने कहा, “कुछ नहीं।”

फुलमतिया जी ने कहा, “तो घंटे भर से हमारे मैरिज सर्टिफ़िकेट में क्या पढ़ रहे हो?”

खदेरन ने बताया, “बस, इसमें इसकी  एक्सपायरी डेट ढ़ूंढ़ रहा थ!”

शनिवार, 2 जुलाई 2011

चित्र का शीर्षक ….. ?

 

“अल्ले ले ले ले ले ….!”

 

 

भप्प ! हे तंग करेगी मेरी बहना को …. म्याऊं … म्याऊं …!

“करूंगी, तलूंगी … गुद्दु .. गुद्दु ..!!”

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

अंतरराष्‍ट्रीय चुटकुला दिवस

आज अंतरराष्ट्रीय चुटकुला दिवस है।

आप सबों को ढ़ेर सारी हंसियां मुबारक!!

मैं यह दावा तो कर ही सकती हूं कि यह ब्लॉग एक  मात्र अगर न भी हो तो कम से कम चुटकुलों को पूर्णतया समर्पित ब्लॉग है। और अब तक 430 चुटकुलों के साथ आपको हंसी बांटने के प्रयास के बाद आज के दिन लिए गुजारिश तो कर ही सकती हूं कि …

आज दिन भर हंसी और खु़शी का बहाना ढ़ूंढ़ते रहिए।

किताबे ग़म में ख़ुशी का ठिकाना ढ़ूंढ़ो,

अगर जीना है तो हंसी का बहाना ढ़ूंढ़ो।

कुछ चित्र हैं देखिए और हंसिए!!! और चुटकुला दिवस पर एक चुटकुला भी अंत में है ….

 

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खदेरन से उसका दोस्त जियावन बोला, “खदेरन भाई मेरी पडो़सन है तो बहुत ही ख़ूबसूरत लेकिन उसे अंग्रेज़ी नहीं आती।”

खदेरन ने उससे पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता क्या उसने ख़ुद बताया?”

जियावन ने समझाया, “जब मैंने उसे अंग्रेज़ी में कहा कि गिव मी ए किस तो उसने मुझे थप्पड़ मार दिया।”

मंगलवार, 28 जून 2011

समय जो बीत गया

खदेरन और फाटक बाबू लॉन में बैठे अभी-अभी थमी बारिश का लुत्फ़ ले रहे थे और बात-चीत कर रहे थे।

शादी पर बात आ गई। शादी के दिनों को याद करते हुए फाटक बाबू ने कहा, “जब तक शादी नहीं हुई थी मुझे एहसास ही नहीं था कि सच्ची ख़ुशी क्या होती है?”

खदेरन ने बड़े भोलेपन से कहा, “छोड़िए न फाटक बाबू! अब पछताने से क्या फ़ायदा? वह समय तो बीत गया।”

रविवार, 26 जून 2011

जूता

खदेरन का जूता काफ़ी पुराना हो गया था। फाटक बाबू ने उससे कहा, ‘‘खदेरन अब इसे बदल ही डालो। जगह-जगह से तुम्हारी पांव की उंगली इसके बाहर झांक रही है।”

खदेरन ने सोचा, “अब बहुत कंजूसी हो गाई बदल ही देता हूं।”

वह फुटपाथ के दूकानदार से एक जोड़ी जूती बहुत मोल-तोल कर ले आया। जब वह वापस लौट रहा था तो अपनी पीठ भी ठोक रहा था कि उसने दूकानदार को बेवकूफ़ बना कर काफ़ी सस्ते में यह जूता ख़रीद लिया है।

घर पर आकर जब उसने उसे पैर में डाला तो बहुत मुश्किल से उसके पैर में आया। अब क्या करे! उसने उस जूते से ही काम चलाने का सोचा।

वह छोटा जूता पहने इधर से उधर घूम रहा था।

भगावन की निगाह उस पर पड़ी, तो बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकते हुए उसने कहा, “पापा! आपने यह जूता कहां से लिया।”

झुंझलाया तो था ही, अपनी बेवकूफ़ी पर खदेरन को गुस्सा भी था। अब भगावन के इस प्रश्न ने उसके सब्र की परीक्षा ही ले ली। बोला, “पेड़ से तोड़ा है।”

भगावन ने हंसते हुए कहा, “तो पापा, अगर दो चार महीने बाद तोड़ते तो आपके पैर के क़ाबिल हो जाता, ज़रा ज़ल्दी की आपने इसे तोड़ने में!”

शुक्रवार, 24 जून 2011

एक और प्रवचन …!

बाबा का प्रवचन सुनकर फाटक बाबू और खदेरन लौट रहे थे।

रास्ते में फाटक बाबू ने कहा, “कितनी शांति मिलती है इस तरह के प्रवचन सुनकर। कितना ज्ञान बढ़ता है!”

खदेरन ने हां में हां मिलाई, “ठीके कहते हैं फाटक बाबू।”

फाटक बाबू ने आगे कहा, “कितना सही कहा बाबा ने दुख हमेशा हमारे साथ रहता है, लेकिन खुशी तो आती-जाती रहती है।”

खदेरन चहका, “बहुत सही फाटक बाबू, बहुत सही! अब देखिए न फुलमतिया जी तो हमेशा हमरे साथे न रहती हैं, लेकिन उनका बहिन सुगंधिया त आती-जाती रहती है।”

मंगलवार, 21 जून 2011

परेशानी का हल

images (42)खदेरन परेशान हो गया। अपनी परेशानी का हल ढ़ूंढ़ने एक साधु के पास पहुंचा।

बोला, “बाबा! मेरी बीवी मुझे बहुत परेशान करती है। मैं बहुत परेशान हूं। इस परेशानी से निजात पाने का कोई उपाय बताइए बाबा!”

बाबा बोले, “बच्चा! अगर इस परेशानी का कोई उपाय मुझे पता होता तो मैं ही साधु संन्यासी क्यों बनता?”

सोमवार, 20 जून 2011

कहीं बाहर चलते हैं।

फुलमतिया जी चहक रही थीं। जब वो चहकती हैं तो सुन्दर दिखती हैं, यह उनका मानना है। आज खदेरन घर पर है। उसकी छुट्टी है। शाम होते ही फुलमतिया जी ने प्रस्ताव रखा, “चलो न, आज की शाम कहीं बाहर चलते हैं।”

खदेरन, “आज बहुत थक गया हूं।”

फुलमतिया जी, “कोई बात नहीं, कार मैं चलाऊंगी, तुम आराम से बैठना।”

खदेरन मन ही मन, ‘ओह! बुरे फंसे। मतलब जाएंगे कार में और आएंगे कल के अखबार में।’

रविवार, 19 जून 2011

क्या फ़र्क़ है

vcm_s_kf_repr_120x160खदेरन और फाटक बाबू गार्डेन में टहल रहे थे। बात-चीत का रुख पत्नी की तरफ़ मुड़ा।

फाटक बाबू बोले, “खदेरन लोग पत्नी को अलग-अलग नामों से बुलाते हैं, जैसे जोरू, बीवी या फिर घरारी। इनमें क्या फ़र्क़ है बोलो?”

खदेरन ने फट से इसका जवाब दिया, “कोई फ़र्क़ नहीं है फाटक बाबू! ये एक ही मुसीबत के अलग-अलग नाम हैं।”

मंगलवार, 14 जून 2011

फीस पूरा देना होगा!

तलाक का मुक़दमा चल रहा था।

मामला बहस के स्टेज तक आ गया।

मुवक्किल चवनिया प्रसाद ने अपने वकील से कहा, “जम के बहस कीजिए ताकि इस मुसीबत से मेरा जल्द से जल्द पीछा छूट जाए।”

वकील अकलु सिंह ने कहा, “वो तो मैं निपटा दूंगा, पर फीस पूरा देना होगा।”

चवनिया के माथे पर बल पड़ गए। पूछा, “कितना लेंगे आप?”

अकलु सिंह वकील ने मुस्कुराते हुए कहा, “ज़्यादा नहीं, बस पचास हज़ार रुपए लगेंगे।”

चवनिया की हैसियत तो नाम के अनुरूप ही थी, बोला, “आपका दिमाग तो नहीं फिर गया? जिसे आप तुड़वाने के लिए पचास हजार मांग रहे हैं, उस शादी के बंधन में बंधने के लिए हमें पंडित को सिर्फ़ इक्यावन रुपए देने पड़े थे।”

अकलु सिंह वकील सिर्फ़ नाम से ही नहीं सच में बुद्धि से भी अकलु ही थे, बोले, “तो देख लिया न सस्ते का नतीज़ा …!”